लेखिनी 15 पार्ट सीरीज प्रतियोगिता # सती बहू(भाग:-14)
गतांक से आगे:-
तभी एक बुजुर्ग आये और उस व्यक्ति के सिर पर हाथ रख दिया और बोले,"उठो ….. बेटा श्याम उठों .. भगवान के आगे किसका बस चलता है ,होनी को यही मंजूर था। क्या वो नहीं चाहती थी कि वो अपनी पहली संतान का मुंह देखे,पर क्या करें उन जालिमों ने तो मार ही डाला होता तुम दोनों को अगर मैं समय पर पहुंच कर तुम दोनों को झोपड़ी से बाहर ना निकालता तो।"
श्याम उठकर ठाकुर साहब के गले लगकर बिलख पड़ा," मुझे पता है चाचा जी , चंदा के अंदर एक अजीब सी दहशत घर कर गई थी ।सारी सारी रात बस यही कहती थी " वो देखो….. विशम्बर के आदमी मेरे बच्चे को मारने आ रहे हैं । श्यामू तुम कुछ करते क्यों नहीं ।"
बस यही डर उसे अंदर से खोखला कर गया कि कहीं उसके बच्चे को कुछ हो ना जाए। मुद्दतों बाद मां बनी थी अपना बच्चा किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी।"
तभी नर्स ने आकर बच्ची श्याम के हाथों में दे दी। बच्ची बिल्कुल चंदा पर गयी थी ठाकुर साहब ने जब बच्ची को देखा तो तुरंत बोल पड़े," श्याम चंदा कहीं नहीं गयी है वो अपना अंश तुम को सौंप कर गयी है ।अब से यही हमारी चंदा है ।"
श्याम ने बड़े ही भारी मन से चंदा का अंतिम संस्कार किया और छोटी सी चंदा को घर ले आया।
अगले दिन जब श्मशान में अस्थि इकठ्ठी करके गडगंगा में विसर्जन का समय आया तो श्याम ने मना कर दिया और अस्थि कलश अपने पास रख लिया।
जब चंदा श्याम से मिलने जा रही थी तो मोती उसका पीछा कर रहा है ये बात ठाकुर साहब को पता चल गयी थी वे नंगे पांव दौड़े और जब उन्होंने ओट में खड़े होकर मोती और विशम्बर की बातें सुनी तो उनके होश ही उड़ गये उन्हें पता चल गया था कि विशम्बर उनको जिंदा जलाने का षड्यंत्र रच रहा है ।वे बदहवास खेतों की ओर भागे और झोपड़ी का दरवाजा खटखटाया। श्याम के बाहर निकलने पर उन्होंने सारी बात बताकर चंदा और श्याम को भोर में जो बस वापस शहर को जाती थी उसमें बैठा दिया।
मतलब विशम्बर कभी भी नहीं जान पाया कि जिस झोपड़ी को वो आग लगाकर आया था उसमें श्याम और चंदा थे ही नहीं ।बस उसके मन को तसल्ली मिल गयी थी कि उसने चंदा और श्याम को जिंदा जला दिया है।जब की वास्तव में चंदा और श्याम शहर पहुंच चुके थे ।साथ में ठाकुर साहब भी थे । श्याम ने अपनी सारी जमापूंजी इकठ्ठी करके अपने आदमी को भेजकर विशम्बर की नीलाम हुई हवेली भी खरीद ली।अब श्याम ही उस हवेली का मालिक था । श्याम ने ये सोचा था कि ठाकुर साहब और ठकुराइन दोनों और चंदा और वह सब मिलकर हवेली में रहेंगे ।उसके माता पिता तो थे नहीं । ठाकुर साहब ने उसका ख्याल बिल्कुल एक पिता की तरह रखा था उसका हर कदम पर साथ दिया था।अब उसका भी फर्ज बनता था वह भी उन दोनों के लिए कुछ करे ।बस वो इस इंतजार में था कि चंदा को सही सलामत बच्चा हो जाए फिर वो गांव रहने जाएंगे और उस विशम्बर को गांव वालों के सामने उसकी पोल खोलकर उसे नीचा दिखाएंगे।
पर होनी को कुछ और मंजूर था जब से विशम्बर ने झोपड़ी फूंकी थी तब से चंदा के मन में एक डर सा बैठ गया था क्योंकि उसने ये सब अपनी आंखों से देखा था अगर चंदा के चाचा ससुर क्षण भर की देरी कर देते तो शायद उनकी हड्डियां भी नहीं बचती उस भीषण आग में।वह बस अंदर ही अंदर घुलती जा रही थी । चौबीसों घंटे उसे ये डर रहता कि कोई उसके बच्चे को मार देगा।उसी बच्चे के कारण वह जगह जहान में उजली हुई थी वरना लोगों ने तो बांझ होने का ठप्पा लगा ही दिया था उस पर ।वह बस सारी सारी रात जागती रहती ।चंदा की चचिया सास धक्के से कुछ खिला देती तो खा लेती वरना भूखी बैठी रहती।जिससे चंदा सूखकर लकड़ी की तरह हो गई थी ।नौ महीने तो गुज़र गये पर प्रसव पीड़ा वह सहन नहीं कर पायी और अपने बच्चे का मुंह देखे बिना ही इस दुनिया से चली गई।
श्याम को दुःख बहुत गहरा लगाव था पर ठाकुर साहब और ठकुराइन व छोटी चंदा को देखकर अपना दुःख सीने में दबा लेता था।
चंदा अब बड़ी हो रही थी ।धीरे धीरे घुटनों के बल चलने वाली चंदा कब पांच साल की हो गयी श्याम को पता ही नहीं चला ।इस दौरान ठाकुर साहब और ठकुराइन का देहांत हो गया था।
एक दिन श्याम ने एक बड़ा निर्णय लिया और वह घर का साजो-सामान बांधनें लगा।
श्याम घर का सामान बांध कर कहां जा रहा है और उपन्यास का क्लाइमेक्स क्या होगा ये जानने के लिए अंतिम भाग का इंतजार करें।……..
(क्रमशः)
HARSHADA GOSAVI
15-Aug-2023 12:57 PM
Nice
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वानी
17-Jun-2023 09:46 AM
Nice
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